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गो सेवा आयोग में गौमय एवं गौमूत्र से नैनों तकनीक के माध्यम से औषधीय घटकों के निर्माण पर व्याख्यान

गौशालाएं वास्तव में आत्मनिर्भर बन सकें

गो सेवा आयोग में गौमय एवं गौमूत्र से नैनों तकनीक के माध्यम से औषधीय घटकों के निर्माण पर व्याख्यान
लखनऊ: 25 जुलाई, 2025

गो सेवा आयोग सभागार में आयोजित विशेष गोसेवा आयोग के अध्यक्ष श्री श्याम बिहारी गुप्त की अध्यक्षता में आज यहां डॉ. शुचि वर्मा, सहायक प्राध्यापिका, रामजस कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा गौम्य एवं गौमूत्र से नैनी तकनीक के माध्यम से सिलिकॉन, पिगमेंट एवं औषधी के निर्माण पर किये गए अनुसंधान पर विस्तृत प्रस्तुति दी गई। इस अवसर पर गो आधारित विज्ञान, जैविक कृषि, ग्रामीण नवाचार एवं प्राकृतिक संसाधनों के सतत उपयोग पर सारगर्भित संवाद हुआ। कई अनुसंधानकर्ता, शिक्षाविद्, पशु वैज्ञानिक एवं गौसेवक इसमें सम्मिलित रहे। इस व्याख्यान का उद्देश्य गौवंश आधारित संसाधनों के वैज्ञानिक उपयोग की संभावनाओं को सामने लाना था, जिससे प्रदेश की गौशालाएं वास्तव में आत्मनिर्भर बन सकें और गौ उत्पादों का औद्योगिक व वैश्विक मूल्य स्थापित हो सके।
अध्यक्ष श्री श्याम बिहारी गुप्त जी ने अपने उद्बोधन में कहा कि अब समय है कि हम गो-संवर्धन को आधुनिक विज्ञान से जोड़ें। गौमूत्र और गोबर जैसे परंपरागत उत्पादों को वैज्ञानिक शोध के माध्यम से सामाजिक, औद्योगिक और वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए।
कार्यक्रम में मुख्य वक्ता डॉ. शुचि वर्मा ने अनुसंधान की मुख्य उपलब्धियों के बारे में बताया कि गौमूत्र में पाए जाने वाले जैविक यौगिकों का प्रयोग कर नैनो-स्तर के सिलिकॉन कणों का निर्माण, जो उच्ब गुणवत्ता के इलेक्ट्रॉनिक व औषधीय उपयोगों में कार्यरत हो सकते हैं। गौमय (गोबर) से प्राकृतिक पिगमेंट तैयार करना, जो टेक्सटाइल, खाद्य एवं कॉस्मेटिक उद्योग में रासायनिक रंगों का पर्यावरण अनुकूल विकल्प हो सकता है। गौमूत्र आधारित एंटीमाइक्रोबियल और एंटीऑक्सीडेंट नैनो उत्पाद, जिनका प्रयोग आयुर्वेदिक औषधियों और त्वचा उत्पादों में किया जा सकता है।
इस आयोजन के माध्यम से यह स्पष्ट रूप से रेखांकित हुआ कि उत्तर प्रदेश गो सेवा आयोग गो-सेवा को संरक्षण की सीमाओं से आगे ले जाकर वैज्ञानिक नवाचार, ग्रामीण विकास और जैविक समृद्धि से जोड़ने की दिशा में गंभीर और संगठित प्रयास कर रहा है। उत्तर प्रदेश गो सेवा आयोग गो-संवर्धन को केवल संरक्षण तक सीमित न रखकर, उसे वैज्ञानिक, सामाजिक एवं आर्थिक सशक्तिकरण के मॉडल के रूप में विकसित करने हेतु संकल्पित है।

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